दीपक सलवान / एडिटर इन चीफ / आवाज ए विरसा
कल महाशिवरात्रि है और त्योहार महादेव की उपासना और साधना का महापर्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर महाशिवरात्रि मनाई जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महाशिवरात्रि पर शिवलिंग की उत्पत्ति हुई थी और इसी दिन सबसे पहले भगवान विष्णु और ब्रह्रााजी ने शिवलिंग की पूजा की थी। महाशिवरात्रि पर शिवजी के विशेष पूजा-आराधना, व्रत और जलाभिषेक किया जाता है। महाशिवरात्रि पर दिनभर पूजा के साथ रात में भो भोलेभंडारी की पूजा करने का विशेष महत्व होता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विवाह हुआ था। आइए जानते हैं इस बार महाशिवरात्रि पर किस तरह का शुभ संयोग बन रहा है, पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि।


कहा जाता है की फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन शिव जी एक शिवलिंग के अवतार में प्रकट हुए थे। वो शिवलिंग करोडो सूर्य के समान प्रभावी था। हुआ ये था की जब इस संसार की रचना हुई तब भगवान विष्णु और ब्रम्हा जी में एक बहस छिड़ गई थी की उन दोनों में से आखिर सर्वश्रेष्ठ कौन है। तभी करोडो सूर्य के समान तेज वाला एक बहुत विशाल अग्नि स्तम्भ शिवलिंग प्रकट हुआ। जिसे देखकर भगवान विष्णु और ब्रम्हा जी दोनों ही आश्चर्य में पड़ गए, उन्होंने इस स्तम्भ का पता लगाने की भी बहुत कोशिश की पर वे दोनों सफल नही हो पाए, क्योकि अग्नि स्तम्भ का ना तो कोई अंत था ना कोई आरम्भ। इसके बाद भगवान भोले भंडारी ने उस अग्नि स्तम्भ(शिवलिंग) से सबको दर्शन दिए। तब से ही पहली शिवरात्रि का आरम्भ हुआ था।
शिव-पार्वती विवाह
पौराणिक कथाओ के अनुसार mahashivratri के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था, इसी दिन माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाया था. इसी दिन भगवान शिव का वियोग ख़त्म हुआ था, यह दिन शिवजी के लिए बेहद प्रिय है। इस दिन भारत में कई जगह शिव जी की बारात भी निकलती है।
महाशिवरात्रि पर प्रदोष व्रत का संयोग
हिंदू कैलेंडर के अनुसार इस बार महाशिवरात्रि पर बहुत ही शुभ संयोग बनने जा रहा है। 18 फरवरी,शनिवार को त्रयोदशी तिथि है और इस तिथि पर प्रदोष का व्रत रखा जाता है। प्रदोष व्रत भगवान शिव की पूजा-उपासना के लिए खास होता है। इस दिन त्रयोदशी तिथि की समाप्ति के बाद चतुर्दशी तिथि प्रारंभ हो जाएगी।
महाशिवरात्रि चतुर्दशी तिथि 2023
हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 18 फरवरी, शनिवार को रात 08 बजकर 05 मिनट से शुरू हो रही है। फिर इसके बाद 19 फरवरी 2023 की शाम को 04 बजकर 21 मिनट पर समाप्त हो जाएगी।
महाशिवरात्रि 2023 पर शुभ संयोग
सर्वार्थ सिद्धि योग- शाम 05:42 से अगले दिन प्रात: 07:05 तक
वरियानो योग : 18 फरवरी को रात्रि 07 बजकर 35 मिनट से वरियान योग प्रारंभ होगा जो अगले दिन दोपहर 03 बजकर 18 मिनट तक रहेगा
निशीथ काल पूजा मुहूर्त( आठवां मुहूर्त) : 24:09:26 से 25:00:20 तक रात्रि का आठवां मुहूर्त निशीथ काल
महाशिवरात्रि पारणा मुहूर्त ( 19 फरवरी) : 06:57:28 से 15:25:28 तक

शुभ मुहूर्त 18 फरवरी 2023
अभिजित मुहूर्त : दोपहर 12:29 से 01:16 तक
अमृत काल : दोपहर 12:02 से 01:27 तक
गोधूलि मुहूर्त : शाम को 06:37 से 07:02 तक
चार पहर के महाशिवरात्रि पूजा मुहूर्त
रात्रि प्रथम प्रहर : 18 फरवरी शाम 6:21 मिनट से रात 9:31 तक
रात्रि द्वितीय प्रहर : 18 फरवरी रात 9: 31 मिनट से 12:41 मिनट तक
रात्रि तृतीय प्रहर : 18-19 फरवरी की रात 12:42 मिनट से 3: 51 मिनट तक
रात्रि चतुर्थ प्रहर : मध्यरात्रि बाद 3:52 मिनट से सुबह 7:01 मिनट तक
महाशिवरात्रि पूजा विधि
महाशिवरात्रि के प्रात:काल स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूजा स्थल पर पूजा सामग्री रख लें। अपने बैठने का आसन ऐसे रखें कि आपका मुख उत्तर या पूर्व दिशा में रहे। अब आप वेदी पर कलश स्थापना करके भगवान शिव एवं नंदी की मूर्ति स्थापित करें।
अब एक पात्र में जल भरकर पंचामृत बनाएं। अब भगवान शिव को जल से अभिषेक करें और भांग, धतुरा, शमी का पत्ता, बेलपत्र, अक्षत्, गाय का दूध, लौंग, चंदन, कमलगट्टा समेत अन्य पूजा सामग्री अर्पित करें। नंदी को भी पूजा सामग्री चढ़ाएं। धूप, गंध आदि भगवान शिव को चढ़ाएं। बेलपत्र को उल्टा करके भगवान शिव पर चढ़ाएं। ये सभी वस्तुएं अर्पित करते समय ओम नम: शिवाय मंत्रोच्चार करें।
इसके बाद शिव चालीसा का पाठ करें। अंत में कपूर या गाय के घी वाले दीपक से भगवान शिव की आरती उतारें। महाशिवरात्रि के दिन व्रत रखें और फलाहार करते हुए सायंकाल या रात्रिकाल में शिवजी की स्तुति पाठ करें। रात्रि जागरण करते हैं तो चार आरती के विधान का पालन करें। इस दिन शिव पुराण का पाठ करें तो भी उत्तम होगा।
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शिव एकादशाक्षरी मंत्र
ओम नम: शिवाय शिवाय नम:। पूजा के बाद इस मंत्र का अधिक से अधिक बार जाप करने से वर्ष भर आप पर शिव कृपा बनी रहेगी।

शिव स्तुति मंत्र
ओम नम: श्म्भ्वायच मयोंभवायच
नम: शंकरायच मयस्करायच
नम: शिवायच शिवतरायच।।
व्रत-पूजन कैसे करें
- इस दिन प्रातःकाल स्नान-ध्यान से निवृत्त होकर अनशन व्रत रखना चाहिए।
- पत्र-पुष्प तथा सुंदर वस्त्रों से मंडप तैयार करके सर्वतोभद्र की वेदी पर कलश की स्थापना के साथ-साथ गौरी-शंकर और नंदी की मूर्ति रखनी चाहिए।
- यदि इस मूर्ति का नियोजन न हो सके तो शुद्ध मिट्टी से शिवलिंग बना लेना चाहिए।
- कलश को जल से भरकर रोली, मौली, चावल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, चंदन, दूध, दही, घी, शहद, कमलगट्टा, धतूरा, बेलपत्र, कमौआ आदि का प्रसाद शिवजी को अर्पित करके पूजा करनी चाहिए। पूजन विधि विस्तृत में पृथक से दी गई है, उसे पूजन से पूर्व एक बार अवश्य पढ़ लें।
- रात को जागरण करके शिव की स्तुति का पाठ करना चाहिए। इस अवसर पर शिव पुराण का पाठ मंगलकारी है। शिव आराधना स्तोत्रों का वाचन भी लाभकारी होता है।
- इस जागरण में शिवजी की चार आरती का विधान जरूरी है।
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- दूसरे दिन प्रातः जौ, तिल-खीर तथा बेलपत्रों का हवन करके ब्राह्मणों को भोजन कराकर व्रत का पारण करना चाहिए। इस विधि तथा स्वच्छ भाव से जो भी यह व्रत रखता है, भगवान शिव प्रसन्न होकर उसे अपार सुख-सम्पदा प्रदान करते हैं।
- भगवान शंकर पर चढ़ाया गया नैवेद्य खाना निषिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि जो इस नैवेध को खा लेता है, वह नरक के दुःखों का भोग करता है। इस कष्ट के निवारण के लिए शिव की मूर्ति के पास शालिग्राम की मूर्ति का रहना अनिवार्य है। यदि शिव की मूर्ति के पास शालिग्राम हों तो नैवेद्य खाने का कोई दोष नहीं होता।




