भारत की आजादी के बाद पंजाब में अब तक कुल तीन हिंदू मुख्यमंत्री रह चुके हैं। पंजाब के पहले मुख्यमंत्री भी हिंदू नेता गोपाल चंद भार्गव थे। हालांकि, 56 साल पहले जब हरियाणा पंजाब से अलग हो गया, तब से लेकर अब तक राज्य में कोई हिंदू सीएम नहीं रहा।
पंजाब में इस बार स्थितियां बदली हुई हैं। शिरोमणि अकाली दल का BJP से ब्रेकअप, आम आदमी पार्टी की एंट्री और किसान संगठनों के चुनावी मैदान में उतरने के बाद मुकाबला पंचकोणीय हो गया है।
हिंदू मतदाताओं को लुभाने के लिए सभी पार्टियां कर रही हैं हरसंभव प्रयास
सिर्फ कांग्रेस पार्टी ही नहीं, बल्कि शिरोमणि अकाली दल व आम आदमी पार्टी भी हिंदू मतदाताओं को लुभाने के लिए सक्रिय हैं। दोनों पार्टियां चुनाव के लिए हिंदू बहुल सीटों पर हिंदू चेहरों को तलाश करती नजर आईं। शिअद अध्यक्ष सुखबीर बादल भी चिंतपूर्णी धाम व राजस्थान स्थित सालासर बालाजी धाम के अलावा अन्य मंदिरों में दर्शन करते नजर आए। आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल भी जालंधर स्थित श्री देवी तालाब मंदिर माथा टेकने पहुंचे थे।
एक ही पार्टी के पक्ष में एकजुट होकर मतदान करते हैं हिंदू मतदाता
हिंदू मतदाता हमेशा एकजुट होकर एक ही पार्टी के पक्ष में मतदान करते हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक सिर्फ सात से 14 फीसद मतदाता इधर से उधर खिसकते हैं। वर्ष 2007 में 13.5 हिंदू मतदाता कांग्रेस से दूर हो गए थे। परिणामस्वरूप कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई थी। उसके बाद वर्ष 2012 के चुनाव में भी यही स्थिति रही। दोनों बार शिअद-भाजपा गठबंधन की सरकार बनी थी। इसके वर्ष 2017 के चुनाव में 10.5 फीसद हिंदू मतदाता शिअद-भाजपा गठबंधन से अलग हो गए थे। परिणामस्वरूप उसके विधायकों की संख्या महज 18 पर ही सिमट गई थी और कांग्रेस सत्ता में आ गई।
इन सीटों पर हिंदू मतदाता निर्णायक
- पठानकोट : 70 फीसद
- बठिंडा शहरी : 62 फीसद
- अमृतसर शहरी : 60 फीसद
- अमृतसर उत्तरी : 60 फीसद
- अमृतसर पूर्वी : 60 फीसद
- अमृतसर पश्चिमी : 60 फीसद
- अमृतसर केंद्रीय : 60 फीसद
- होशियारपुर: 60 फीसद