एडिटर इन चीफ/ ब्यूरो चीफ/ दीपक सलवान
पंजाब में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी ने तैयारी शुरू कर दी है। कृषि कानूनों को लेकर किसानों की तरफ से हो रहे विरोध की वजह से पार्टी अलग-थलग पड़ी महसूस हो रही है। यहां तक कि शिरोमणि अकाली दल ने दो दशक पुराना गठबंधन भी तोड़ दिया है। अब बीजेपी की नजर उन 45 सीटों पर है, जहां हिंदुओं की तादाद अधिक है।
बीजेपी ने उन सीटों को पॉइंट आउट किया है, जहां पार्टी जनसंघ के दिनों से ही चुनावी राजनीति में ऐक्टिव है। इनमें रोपड़, पटियाला (शहरी), भठिंडा (शहरी), जलालाबाद शामिल है। इसके अलावा कुछ ऐसी सीटें भी हैं, जहां पार्टी संगठन के स्तर पर मजबूती से उपस्थित है। इनमें मोहाली, खराड़, डेराबस्सी जैसी सीटें शामिल हैं।
भाजपा यह मान रही है कि 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले अगर कृषि कानूनों को लेकर केंद्र सरकार कोई बदलाव नहीं करती है तो उन्हें इन्हीं परिस्थितियों में चुनाव मैदान में उतरना पड़ेगा। ऐसे में उसने अपना फोकस 73 ऐसी सीटों पर फोकस करना शुरू कर दिया है, जहां पर हिंदू और दलित की आबादी अधिक है।
पार्टी का मानना है कि इन सीटों पर फोकस करके वह विधानसभा चुनाव में बड़ा उलटफेर कर सकती है। भाजपा की नजर उन 45 सीटों पर है, जहां पर हिंदू आबादी 60 फीसद से अधिक है और इन पर किसान आंदोलन का कोई खास असर नहीं है। उलटा यहां की आबादी किसान आंदोलन की वजह से उत्पन्न हुए हालातों से नाराज भी है, जबकि 28 ऐसी सीटें है जहां पर हिंदू और दलित की आबादी 60 फीसद से अधिक है।
बीजेपी ने पंजाब के जिलों की यूनिट को समान विचार वाले सामाजिक संगठनों के साथ भी कार्य करने के निर्देश दिया हुआ है। बीजेपी के महासचिव सुभाष शर्मा ने तो यह भी ऐलान कर डाला है कि पार्टी सभी 117 सीटों पर चुनावी मैदान में उतरेगी। गौरतलब है कि किसान संगठनों से लेकर स्थानीय आबादी तक में बीजेपी के प्रति नाराजगी है।
पंजाब की राजनीति में दलितों और हिंदुओं की उपेक्षा किस कदर होती रही है, यह इस बात से ही समझा जा सकता है कि रामगढ़िया सिख बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले ज्ञानी जैल सिंह को छोड़ दें तो 1967 के बाद पंजाब में नॉन जट्ट कभी मुख्यमंत्री नहीं बना। कह सकते हैं कि सत्ता की चाह में सियासी दल आतंकवाद के दौर के बाद पंजाब को ध्रुवीकरण की राह पर लेकर चल पड़े हैं। उनकी नजर राज्य के उन 70% दलित और हिंदू वोटरों पर है, जिनके राजनीतिक नसीब में कभी CM की कुर्सी नहीं रही।
भाजपा : हरियाणा मॉडल के ‘ट्रैप’ में फंसे दल
पंजाब में भाजपा के हरियाणा मॉडल की चर्चा अक्सर होती है जहां जाटों के दबदबे के बावजूद पार्टी ने नॉन जाट समुदाय से आने वाले मनोहर लाल खट्टर को सीएम बनाकर वोटों का ध्रुवीकरण किया। पंजाब की दोनों प्रमुख पार्टियों-अकाली दल और कांग्रेस- ने कभी दलितों या हिंदुओं को सियासत में तरजीह नहीं दी। इसी बात को समझते हुए और प्रदेश में 39% दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए भाजपा ने अकालियों के अलग होते ही दलित CM बनाने का दांव खेल दिया। उसके बाद बाकी पार्टियां भाजपा के इस दांव को काउंटर करने में जुट गईं।

