“मोदी तुझसे बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं…”
इसी नारे के साथ 37-वर्षीय चिराग पासवान और उनकी पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) ने उस गठबंधन से बाहर निकल आने की धमकी पर खरा उतरकर दिखाया है, जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी साझीदार हैं. अब LJP मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (JDU) के खिलाफ प्रत्याशी उतारेगी, लेकिन उन सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेगी, जो भारतीय जनता पार्टी (BJP) के हिस्से में होंगी. और उधर, केंद्र में चिराग पासवान और नीतीश कुमार, दोनों की पार्टियां BJP के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का हिस्सा बनी रहेंगी.
अगर आपको कन्फ्यूज़ करने के लिए इतना काफी है, तो भी बस, देखते रहिए – हर बढ़िया बिहारी राजनैतिक गाथा की तरह इसमें भी एक शानदार ट्विस्ट है…
मोदी से कोई नफरत नहीं है, नीतीश आपके नहीं हैं। एक या दो दिन पहले LJP का यह पोस्टर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ और आखिरकार LJP प्रमुख चिराग पासवान ने इस रास्ते पर निकल पड़े। बिहार विधानसभा चुनाव के बारे में अब तक की सबसे बड़ी खबर यह है कि लोजपा प्रमुख चिराग पासवान ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व को खारिज कर दिया है।
बिहार विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में नहीं लोजपा ने एक बड़ा फैसला लिया है। एलजेपी का फैसला आश्चर्यजनक लग सकता है, लेकिन सच्चाई यह है कि इसकी पटकथा लंबे समय से लिखी जा रही थी। लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद ही चिराग पासवान ने पार्टी की रणनीति और तौर-तरीकों में बदलाव के संकेत दिए।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्होंने बिहार में विधानसभा चुनाव के बिगुल बजने से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला करना शुरू कर दिया। कोरोना संकट की शुरुआत और बिहार के कई जिलों में बाढ़ के बाद, चिराग पासवान ने अपने दिल को तेज कर दिया था और सीधे तौर पर बिहार की दुर्दशा के लिए नीतीश कुमार को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया था। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री की गलत नीतियों के कारण बिहार के लोगों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर चिराग के सीधे हमले से जेडीयू भी काफी नाराज थी। हालाँकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने चिराग के हमलों का कभी जवाब नहीं दिया, लेकिन उनके करीबी लल्लन सिंह ने चिराग को तीखी प्रतिक्रिया दी और उन्हें कालिदास भी कहा।
उन्होंने कहा कि जिस तरह से कालिदास उस शाखा को काट रहे थे जिस पर वे बैठे थे, वही स्थिति चिराग पासवान की है। जदयू के कई अन्य नेताओं ने भी चिराग के बयानों पर आपत्ति जताई।
चिराग ने बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर जदयू से अलग रुख अपनाया। राजद नेता तेजस्वी यादव वर्तमान स्थिति में बिहार में चुनाव कराने के पूरी तरह से खिलाफ थे और चिराग पासवान ने भी चुनाव आयोग को पत्र लिखकर चुनाव स्थगित करने का अनुरोध किया था।
नीतीश कुमार की मौजूदगी वाली टीम से बाहर निकलने के लिए चिराग ने जानबूझकर इतनी सीटें मांग लीं, जिनके लिए साझीदारों को इकार ही करना पड़े. बस, फिर वह बाहर निकल आए, और शाह का लिखा कथानक स्पष्ट कर दिया – दिल्ली में साझीदार, बिहार में विरोधी…
नीतीश कुमार को उनकी वास्तविक स्थिति दिखा देने की इस कोशिश से बिहार चुनाव में एक नया ट्विस्ट जुड़ गया है, और साबित करता है कि बिहार में होने वाला कोई भी चुनाव ऊबाऊ नहीं हो सकता. कुछ ही हफ्ते पहले तक नतीजा कतई स्पष्ट दिख रहा था – नीतीश कुमार और BJP की आसान जीत. अब, मामला काफी जटिल हो गया है.
मैंने इस आलेख के लिए बिहार के कई नेताओं से बात की. सभी ने एक विरोधाभासी-सी बात कही – पिछले एक साल में खराब गवर्नेन्स के कारण नीतीश कुमार के खिलाफ पैदा हुए गुस्से से किसी भी तरह गठबंधन में शामिल प्रधानमंत्री को नुकसान नहीं पहुंचा है. अगर इसकी कीमत चुकानी पड़ी, तो वह सिर्फ नीतीश ही चुकाएंगे, और गठबंधन को इससे नुकसान नहीं होगा.
नीतीश कुमार राजनैतिक कलाबाज़ियों के मामले में दिग्गज हैं, और अपनी इसी सरकार को बनाए रखने के लिए साझीदार बदल चुके हैं (उन्होंने अपने पुराने सहयोगी BJP का साथ छोड़कर कांग्रेस व लालू यादव के साथ मिलकर सरकार बनाई थी, और फिर उन्हें छोड़कर BJP का दामन थाम लिया था), लेकिन इस बार ऐसा लगता है, वह पीछे छूट सकते हैं. BJP के एक केंद्रीय नेता का कहना था कि अवसर देखकर साझीदार बदलने वाले के तौर पर नीतीश कुमार की छवि ज़ाहिर हो चुकी है. उन्होंने कहा, “हर बिहारी जानता है कि वह ‘कुर्सी कुमार’ हैं… जहां कुर्सी, वहां नीतीश…”
इन दिनों नीतीश कुमार अपनी अंतरात्मा की उस आवाज़ को लेकर भी चुप हैं, जिसने उनके दावे के मुताबिक उनकी राजनीति की दिशा तय की है.
अपनी तरक्की के लिए अपने ही साझीदारों का नुकसान करवा देना BJP के लिए कोई नई बात नहीं है. बिल्कुल ऐसा ही महाराष्ट्र में शिवसेना और पंजाब में अकाली दल के साथ हुआ था. दोनों ने BJP से नाता तोड़ लिया, लेकिन अपनी क्षेत्रीय पकड़ को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए.
नीतीश कुमार ने अतीत में साझीदार बदलने के फैसले को अंतरात्मा की आवाज़ बताया था. लेकिन अब उन्हें राजनैतिक अंतर्ज्ञान से काम लेना होगा.