Adipurush: फिल्म ‘आदिपुरुष’ को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच में हुई सुनवाई में कोर्ट ने फिल्म के मेकर्स को जमकर फटकार लगाई है. साथ ही राइटर मनोज मुंतशिर शुक्ला को नोटिस भी जारी किया है.
फिल्म ‘आदिपुरुष’ के मेकर्स को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फटकार लगाई है. ये फिल्म रिलीज के बाद से ही विवादों में घिर गई थी. फिल्म के संवादों पर दर्शकों ने तीखी आपत्ति जाहिर की थी. जिसके बाद फिल्म के मेकर्स ने विवादित डायलॉग्स को बदला भी है. हालांकि अभी भी फिल्म को लेकर गुस्सा दिख रहा है. इसी को लेकर एक याचिका की सुनवाई करते हुए इलादाबाद हाईकोर्ट ने मेकर्स को कड़ी फटकार लगाई है. साथ ही कोर्ट ने सेंसर बोर्ड की भूमिका पर भी सवाल करते हुए कहा कि सेंसर बोर्ड ने भी जिम्मेदारी नहीं निभाई.
(फिल्म आदिपुरुष-इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच)
लखनऊ। फिल्म आदिपुरुष के आपत्तिजनक डायलॉग के मामले से जुड़ी याचिका पर आज इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. इस दौरान हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने फिल्म को लेकर बड़ी टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि हर बार हिंदुओं की ही सहनशक्ति की परीक्षा क्यों ली जाती है? भगवान का शुक्र है कि उन्होंने (हिंदुओं ने) किसी कानून को नहीं तोड़ा है.
लोग कुछ भी कर सकते थे?
कोर्ट ने आगे कहा कि हमने खबरें पढ़ी हैं कि कुछ लोगों ने सिनेमा हॉल में जहां यह फिल्म प्रदर्शित हो रही थी, वहां जाकर हॉल को बंद करने के लिए मजबूर किया. वे इसके अलावा भी बहुत कुछ कर सकते थे. कोर्ट ने कहा कि ये याचिका इसी को लेकर है कि जिस तरह से यह फिल्म बनाई गई है. धार्मिक ग्रंथ ऐसे हैं, जो लोगों के लिए पूज्नीय हैं. बहुत सारे लोग घरों से निकलने से पहले रामचरित मानस को पढ़ते हैं. ऐसे में पूज्यनीय धार्मिक पात्रों को आपत्तिजनक तरीके से पेश करना गलत है.
कोर्ट ने पूछा, सेंसर बोर्ड कहां है?
इस मामले में लखनऊ पीठ ने कहा कि क्या हम लोग इस पर भी अपनी आंखें बंद कर लें, क्योंकि इस धर्म के लोग सहनशील हैं। क्या आप उनकी परीक्षा ले रहे हैं? इस दौरान कोर्ट ने सवाल किया कि क्या फिल्म प्रमाणन प्राधिकरण, जिसे आम तौर पर सेंसर बोर्ड कहा जाता है, ने अपनी जिम्मेदारी पूरी तरह से निभाई है?
कोर्ट ने फिल्म के दृष्यों पर उठाए सवाल
कोर्ट ने कहा हि कि यह अच्छा है कि लोगों ने फिल्म देखने के बाद कानून-व्यवस्था की स्थिति को नुकसान नहीं पहुंचाया। भगवान हनुमान और माता सीता को ऐसे दिखाया गया है, जैसे वे कुछ भी नहीं हैं। इन चीजों को शुरुआत से ही हटा दिया जाना चाहिए था। कोर्ट ने यह भी कहा कि कुछ दृश्य ‘ए’ श्रेणी (वयस्क) के लगते हैं।
समाज में क्या संदेश जाएगा?
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने याचिकाकर्ता प्रिंस लेनिन और रंजना अग्निहोत्री की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि क्या सेंसर बोर्ड ने अपनी जिम्मेदारी सही से निभाई है? फिल्म निर्माता भगवान हनुमान और मां सीता को ऐसा दिखाकर समाज में क्या संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं. इसके साथ ही सॉलिसटर जनरल से जवाब मांगते हुए बेंच ने कहा कि यह मामला गंभीर है. क्या आप सेंसर बोर्ड से यह पूछ सकते हैं कि यह कैसे किया गया? क्योंकि राज्य सरकार इस मामले पर कुछ नहीं कर सकती है.