यूक्रेन जंग में अकेला छूट गया है। राष्ट्रपति जेलेंस्की ने अमेरिका व नाटो पर नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने कहा है कि सब डरते हैं। हमें अकेला छोड़ दिया गया है। आखिर वह वजह क्या है, जिस कारण कोई भी पुतिन से सीधे टकराने से हिचक रहा है?
यूरोप में छिड़ी जंग में यूक्रेन अकेला छूट गया है। उसे रूस के गुस्से का शिकार होना पड़ रहा है। रूसी टैंक यूक्रेन की राजधानी से महज 30 किलोमीटर की दूरी पर खड़े हैं। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को आशंका है कि, 96 घंटे के अंदर राजधानी कीव पर रूस का कब्जा होगा और एक सप्ताह के अंदर यूक्रेन की सरकार भी गिरा दी जाएगी। ऐसे में सवाल उठता है कि, अमेरिकी समर्थन वाला यूक्रेन इस जंग में इतना अलग-थलग क्यों पड़ गया? आखिर, नाटो सदस्य देश और अमेरिका सीधे तौर पर रूस से टकराने से क्यों पीछे हट रहे हैं। सीधे हमले के बजाय वे बस बयानबाजी और प्रतिबंधों तक क्यों सीमित हैं?
आसान नहीं है पुतिन से टकराना
रूस के राष्ट्रपति पुतिन से टकराना किसी भी देश के लिए आसान नहीं है। यह बात अमेरिका भी जानता है। यही कारण है कि अमेरिका ने सीधे तौर पर कहा दिया कि वह अपनी सेना यूक्रेन में नहीं भेजेंगे। ऐसा ही संदेश नाटो की ओर से भी दिया गया है। इसका मतलब है कि, यूक्रेन को यह जंग अकेले ही लड़नी पड़ेगी।
रूस और यूक्रेन के बीच बदतर हो चुके हालात के बीच रूस ने अमेरिका के तमाम आर्थिक प्रतिबंधों को दरकिनार कर दिया है, लेकिन लगता है अमेरिका के सामने दूसरा कोई रास्ता भी नहीं बचा है. दरअसल दोनों देशों के बीच चल रहे विवाद के बीच एक बार फिर बाइडन मीडिया के सामने आए. उन्होंने रूस के 4 बड़े बैंकों पर प्रतिबंध के साथ कई दूसरे आर्थिक पाबंदियों का एलान किया. इसके साथ ही अमेरिका में रूस के दूसरे नंबर के राजनयिक को भी देश छोड़ने का आदेश दे दिया गया है.
यूक्रेन में अमेरिका अपनी सेना तैनात नहीं करेगा
इस हमले से अमेरिका पूरी तरह गुस्से में है. अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने चेतावनी देते हुए कहा कि पुतिन ने युद्ध के रास्ते को चुना है और अब उनके कदमों की कीमत रूस के लोग चुकाएंगे. बाइडन ने इस वादे को दोहराया कि नाटो देशों के हर इंच की जमीन की रक्षा की जाएगी, लेकिन नाटो में शामिल होने के चक्कर में तबाही झेल रहे यूक्रेन में अमेरिका अपनी सेना तैनात नहीं करेगा.
इसके अलावा बाइडन ने पुतिन से बात करने से साफ इनकार कर दिया है. कहा – मेरी कोई योजना नहीं है क्योंकि पुतिन फिर से सोवियत संघ बनाना चाहते हैं. लेकिन पत्रकारों के सवाल पर बाइडन ने जरूर भारत से चर्चा करने की बात कही और इसके कुछ देर बाद ही अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से फोन पर बात की.
नाटों देशों के साथ अमेरिका की बैठक
हालांकि आज फिर दुनिया की निगाहें जो बाइडन पर होंगी क्योंकि उनके मुताबिक रूस-यूक्रेन युद्ध के हालात पर आज नाटो देशों के साथ अमेरिका की बड़ी बैठक है. रूस-यूक्रेन युद्ध के हालात पर आज नाटो देशों के साथ अमेरिका की बड़ी बैठक है.
आखिर क्यों डर रहे यूरोपीय देश
रूस पर सीधे हमले से यूरोपीय देश पीछे हट रहे हैं। इसका प्रमुख कारण है, इन देशों की रूस पर निर्भरता। दरअसल, यूरोपीय देश ऊर्जा के लिए बहुत हद तक रूस पर निर्भर हैं। यूरोपीय संघ के कई देश, जो नाटो सदस्य भी हैं अपनी प्राकृतिक गैस आपूर्ति का 40 फीसदी हिस्सा रूस से प्राप्त करते हैं। ऐसे में अगर रूस गैस और कच्चे तेल की सप्लाई रोक देता है, तो यूरोप बड़े ऊर्जा संकट की कगार पर खड़ा हो जाएगा। बिजली व पेट्रोलियम उत्पादों पर महंगाई कमर तोड़ सकती है। यह बात सभी देश जानते हैं। इसलिए यूरोपीय देश सीधे तौर पर रूस से टकराने से हिचक रहे हैं।
रूस पर प्रतिबंधों का खास असर नहीं
अमेरिका व अन्य कई देशों द्वारा रूस पर प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं। इसके बावजूद रूस रुकने के लिए तैयार नहीं है। दरअसल, रूस ने अपनी ताकत को इस कदर बढ़ाया है कि, यह देश किसी भी तरह के प्रतिबंध से बहुत प्रभावित होने वाला नहीं है। अमेरिका व नाटो देशों द्वारा सीधे हमला न करने का एक कारण यह भी है। दरअसल, जनवरी में रूस का अंतरराष्ट्रीय मुद्रा भंडार 630 अरब डॉलर था। इससे भी दिलचस्प बात यह है कि इसमें से महज 16 फीसदी हिस्सा ही डॉलर के तौर पर रखा है। जबकि, पांच वर्ष पहले यह 40 फीसदी था।