भगवान श्री कृष्ण, 16 कलाओं से युक्त ईश्वर के पूर्ण अवतार, यूं तो श्रीकृष्ण सर्वत्र व्याप्त हैं| लेकिन क्या आप जानते हैं कि श्री कृष्ण के अवतारी शरीर का ह्रदय आज भी धड़क रहा है| बताया जाता है कि श्री कृष्ण का ह्रदय आज भी जस का तस है और वह भगवान जगन्नाथ की काट की मूर्ति के अंदर स्थापित है|
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भारत में लोगों का भगवान पर अटूट विश्वास है। ऐसे में एक रहस्य सामने आया है, कि धरती पर आज भी भगवान श्री कृष्ण का दिल धड़क रहा है। आप सब को पता ही होगा कि महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद कौरवों का अंत तो हुआ था साथ ही भगवान श्री कृष्ण का अंत भी प्रारंभ हुआ था। श्रीमद् भगवद गीता के अनुसार जब महाभारत युद्ध में धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्रों की मृत्यु हो गई थी जिसके बाद गांधारी ने भगवान श्री कृष्ण को श्राप दिया था अब तुम्हारा भी विनाश होगा।
महाभारत युद्ध के बाद जब एक दिन भगवान वन में एक पेड़ के नीचे योग समाधि में लीन थे, तब जरा नामक शिकारी भगवान के पैर को हिरण समझ उन पर तीर चला देता है। जिसके बाद शिकारी भगवान से अपनी गलती के लिए क्षमा मांगने लगता है। तब भगवान ने उन्हें समझाया कि इसमें उनका कोई दोष नहीं है उनकी मृत्यु तो पहले से ही तय थी
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साथ ही भगवान ने उन्हें त्रेता युग की बात बताई की मैं त्रेता युग में राम अवतार में जब मृत्यु लोक आया था और तब तुम सुग्रीव के बड़े भाई बाली थे और मैंने तुम्हारा छिपकर वध किया था। यह मेरे पिछले जन्म के कर्म का फल है जो मुझे इस जन्म में मिला है। इतना कह कर भगवान श्री कृष्ण अपने शरीर का त्याग कर दिया था।
इसके बाद जब अर्जुन द्वारका आए तब कृष्ण और बलराम दोनों की मृत्यु हो चुकी थी। जिसके बाद अर्जुन ने दोनों भाईयों का अंतिम संस्कार किया। कहा जाता है कि श्री कृष्ण और बलराम दोनों का शरीर जलकर राख हो गई थी लेकिन श्री कृष्ण का हृदय राख नहीं हुआ था। कुछ समय बाद समस्त द्वारका नगरी समुद्र में समा गई थी। जिसके अवशेष आज भी समुद्र में मौजुद हैं। भगवान का हृदय लोहे के मुलायम पिंड में परिवर्तित हो गया था।
अवंतिकापुरी के राजा इंद्रद्युम्न भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे और उनके दर्शन के अभिलाषी थे, एक रात उन्हें भगवान नारायण का सपना आया कि भगवान उन्हें नीले माधव के रूप में दर्शन देंगे। जिसके बाद राजा भगवान नीले माधव के खोज में निकल गए। राजा को बहुत दिनों की खोज के बाद नीले माधव मिले तब उन्हें अपने साथ लाकर जगन्नाथ मंदिर में उनकी स्थापना कर दिया।
एक बार नदी में स्नान करते समय इंद्रद्युम्न को पानी में लोहे का पिंड तैरता हुआ दिखा जिसे देख राजा आश्चर्य में पड़ गए और उस पिंड़ को अपने हाथ में उठा लिया । पिंड के स्पर्श करने के बाद राजा के कान में भगवान विष्णु की अवाज सुनाई दी भगवान ने राजा से कहा यह मेरा हृदय है जो इस लोहे के पिंड के रूप में धरती में हमेशा धड़कता रहेगा।
राजा ने उस पिंड को भगवान जगन्नाथ के मंदिर में स्थापित कर दिया और सभी को सावधान करते हुए, उस पिंड को छूने और देखने के लिए सख्त मना किया। कहा जाता है कि आज तक राजा इंद्रद्युम्न के अलावा भगवान श्री कृष्ण के ह्रदय को किसी ने भी न देखा है और न स्पर्स किया है। इसलिए जब भी नवकलेवर के अवसर पर भगवान की मूर्ति को बदला जाता है तब मूर्ति बदलने वाले पंडित के आंखों में पट्टी बांधी जाती है ताकि कोई भी पिंड को न देख सके।
भगवान जगन्नाथ कर रहस्य अब तो कोई नहीं जान पाया| जगन्नाथ स्वामी की मूर्ति को हर 12 साल में बदला जाता है| इस दौरान पूर्व शहर की रोशनी बंद होती है| बिजली बंद करने के बाद मंदिर के परिसर को घेर लिया जाता है| सीआरपीएफ की सेना के प्रोटेक्शन में आने के बाद मंदिर में कोई नहीं प्रवेश कर सकता| इस कृष्ण ह्रदय को ब्रह्म पदार्थ कहते हैं| हालांकि इस ब्रह्म पदार्थ के रहस्य को अभी भी लोग नहीं जान पाए हैं| बस से सैकड़ों सालों से एक मूर्ति से दूसरी मूर्ति में हस्तांतरित किया जाता रहा है| बात यह है कि ब्रह्म पदार्थ को बदलने वाला पुजारी भी यह नहीं जानता कि वह किस चीज को हस्तांतरित कर रहा है क्योंकि उसके हाथ में दास्ताने होते हैं और आंख में पट्टी| हालांकि पुजारी यह जरूर कहते हैं कि जिस पदार्थ को बदलते हैं वह खरगोश के जैसे उछलता है| भगवान जगन्नाथ का मंदिर और भी कई रहस्यों से भरा हुआ है जिस समुद्र की लहरें मंदिर के बाहर जोर-जोर से सुनाई देती है अंदर प्रवेश करते ही सारा शोर थम जाता है| जगन्नाथ मंदिर के शिखर से कोई पक्षी नहीं गुजरता है यह भी एक आश्चर्यजनक बात है क्योंकि सभी मंदिरों के शिखरों पर पक्षी देखे जाते हैं| इस मंदिर का झंडा हमेशा हवा की उलटी दिशा में लहराता है| एक और खास बात है कि किसी भी समय भगवान जगन्नाथ के मंदिर के मुख्य शेखर की परछाई नहीं देखी जाती| जगन्नाथ मंदिर के शिखर का झंडा रोज बदला जाता है ऐसा कहा जाता है कि झंडा यदि एक भी दिन नहीं बदला गया तो मंदिर 18 साल तक बंद हो जाएगा| भगवान जगन्नाथ टेम्पल के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र है, जो हर दिशा से देखने पर आपके मुंह की तरफ दिखता है। भगवान जगन्नाथ प्रसाद पकाने के लिए मंदिर की रसोई में मिट्टी के 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं, प्रसाद को लकड़ी की आग से ही पकाया जाता है, आश्चर्य है कि सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है। हर दिन बनने वाला प्रसाद भगवान जगन्नाथ मंदिर में भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता, लेकिन हैरत में डालने वाली बात ये है कि जैसे ही मंदिर के पट बंद होते हैं वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है।
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