जानकारी के मुताबिक, नए संसद भवन में सदस्यों के बैठने के लिए 900 सीटें होंगी. वहीं संयुक्त सत्र के लिए 1350 सीटों की व्यवस्था होगी.
हाइलाइट्स:
- बोली में लार्सन एंड टुब्रो को को पीछे छोड़ा
- निर्माण एक वर्ष में पूरा होने की संभावना
- ब्रिटिश काल में हुआ था मौजूदा संसद का निर्माण
टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड ने 861.90 करोड़ रुपये की लागत से नए संसद भवन के निर्माण का कॉन्ट्रेक्ट हासिल किया है। टाटा ने निर्माण के लिए लगाई गई बोली में लार्सन एंड टुब्रो को पछाड़ा जिसने 865 करोड़ रुपये की बोली लगाई थी। केंद्रीय लोक निर्माण विभाग ने नए संसद के निर्माण के लिए आई बोलियों को बुधवार को खोला जिसमें फैसला टाटा के पक्ष में आया। प्रोजेक्ट के एक साल में पूरे होने की संभावना है। सीपीडब्ल्यूडी ने नए संसद भवन के निर्माण में 940 करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान जताया था।
जानकारी के अनुसार, नई बिल्डिंग को त्रिकोणाकार में डिजाइन किया जाएगा। मौजूदा संसद की बिल्डिंग का निर्माण ब्रिटिशकाल में किया गया था और यह वृत्ताकार है। देश को आजाद हुए 75 साल होने वाले हैं और देश का संसद भवन अब काफी पुराना हो चुका है। उसमें अलग-अलग तरह की समस्याएं सामने आ रही हैं। मोदी सरकार का इरादा है कि जब देश 15 अगस्त 2022 को अपनी आजादी की 75 की वर्षगांठ मना रहा हो तब सांसद नए संसद भवन में बैठें।
बता दें कि पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, मौजूदा लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू नए संसद भवन की जरूरत को लेकर वकालत कर चुके हैं। जानकारी के अनुसार, मोदी सरकार ने इस पर अपना एक ड्रीम प्लान तैयार कर लिया है। जिस पर अब वह तेजी से आगे बढ़ने की मंशा रखती है।
कैसा होगा नया संसद भवन?
सरकार जल्द ही नई संसद का काम शुरू करने की तैयारी में है. 2022 के जुलाई महीने में होने वाला मानसून सत्र नई संसद में आयोजित किए जाने की तैयारी है. नए संसद भवन में सेंट्रल हॉल नहीं होगा. प्रत्येक सांसदों के लिए अलग से कमरा, लाइब्रेरी, मीटिंग हॉल व अन्य सभी चीजों की व्यवस्था होगी.
जानकारी के मुताबिक, नए भवन में सांसदों के बैठने के लिए 900 सीटें होंगी जबकि संयुक्त सत्र में 1350 सांसदों के बैठने की व्यवस्था होगी. इसमें दो सांसदों के बैठने के लिए एक बैंच होगी ताकि सांसदों को बैठने में को तकलीफ ना हो
जानें पुराना संसद भवन कब बना था?
मौजूदा संसद भवन 1911 में बनना शुरू हुआ था। तब अंग्रेजों के शासन के दौर में दिल्ली राजधानी बनी थी। सन 1927 में संसद भवन का उद्घाटन हुआ था। लेकिन आज के समय के हिसाब से संसद भवन में काफी समस्याएं देखी जाने लगी हैं। सबसे बड़ी समस्या है कि संसद में मंत्रियों के बैठने के लिए तो चैम्बर हैं लेकिन सांसदों के लिए नहीं हैं। इसके अलावा बिजली सप्लाई का सिस्टम भी पुराना है, जिसके चलते शॉर्ट सर्किट की समस्या होती रहती है।