आगरे के क़िले में धूम है. नए बादशाह ख़ुर्रम की ताज पोशी 14 फ़रवरी 1628 को हो रही है.अर्जुमंद आरा इस अवसर पर की जाने वाली तैयारियों में व्यस्त हैं लेकिन रोशन आरा थक कर सो चुकी हैं.
बाक़ी बच्चे दारा, शुजा और औरंगज़ेब तीरंदाज़ी के अभ्यास के लिए निकल गए हैं. जहां आरा को कोई काम नहीं और वो महल के कोने में मौजूद मस्जिद का रुख़ करती हैं जिसमे आम तौर पर हरम की औरतें ही जाती हैं.
मस्जिद में जहां आरा को एक महिला नमाज़ अदा करती नज़र आती है. उनकी इबादत में ख़लल डाले बिना वो महल के बारे में सोच रही हैं जहां छह साल पहले वो रहा करती थीं और फिर छह साल तक दक्कन में मांडू, बुरहानपुर, उदयपुर और नासिक में जिलावतनी का जीवन गुज़ारकर सिर्फ एक सप्ताह पहले ही वापिस आई थीं.
महिला अपनी नमाज़ पूरी करती है और इस भरी दोपहर में जहां आरा को मस्जिद में अकेले देख कर हैरान हो जाती है. जहां आरा उन्हें पहचान लेती हैं. वो फ़तेहपूरी बेगम हैं, जहां आरा की सौतेली माँ. दोनों बातें करने लगती हैं. फतेहपुरी बेगम सुनसान सहन पर नज़र डाल कर कहती हैं, “एक दिन मैं भी एक मस्जिद बनवाऊंगी. अब ख़ुर्रम शहंशाह बन चुका है तो शायद वो मुझे इसके लिए पैसा दे दे.”
जहां आरा ने ख़्वाब देखने जैसे अंदाज़ में कहा, “मैं भी एक मस्जिद का डिज़ाइन तैयार करुंगी जिसके गुंबद ऊंचे नीचे लहरदार पैटर्न में स्याह सफ़ेद संगमरमर के होंगे.”
ये कोई मामूली महिलाएं नहीं हैं बल्कि एक हिन्दुस्तान के नए ताजदार मुग़ल बादशाह शहाबुद्दीन मोहम्मद शाहजहां की पत्नी फतेहपुरी बेगम हैं तो दूसरी पत्नी अर्जुमंद बेगम यानी मुमताज़ महल के पेट से पैदा होने वाली शाहजहां की बड़ी बेटी जहाँ आरा हैं जिन्होंने न सिर्फ़ आगरे की जामा मस्जिद का निर्माण कराया बल्कि दिल्ली के चांदनी चौक के निर्माण का सपना भी उन्होंने ही देखा था और उसकी हक़ीक़त आज हमारे सामने हैं.
वहीं, चांदनी चौक जो भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित पुरानी दिल्ली का दिल है और जो शाहजहां बादशाह के बसाए हुए शहर शाहजहांनाबाद का दिल हुआ करता था. चांदनी चौक पिछले 370 से साल भारत के ऐतिहासिक उतार चढ़ाव का गवाह रहा है.
अब दिल्ली सरकार ने चांदनी चौक की पुरानी रौनक स्थापित करने का बीड़ा उठाया है. फतेहपुरी मस्जिद से लेकर लाल क़िले के मैदान तक लगभग सवा किलो मीटर में फैले इस बाज़ार में आज कल सजावट का काम हो रहा है.
सरकार के अनुसार इसे ‘कार फ्री’ ज़ोन बनाया जा रहा है और इसे इसकी पुरानी सजावट शैली में सजाने की बात कही जा रही है. ये इलाक़ा नवंबर तक आम लोगों के लिए खोल दिया जाएगा.
या शहर और नई राजधानी
असल में चांदनी चौक के फेस लिफ्ट का विचार सबसे पहले सन् 2004 में आया था. उसके बाद सन् 2008 में दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने जो खुद एक महिला थीं, शाहजहांनाबाद रिडेवलपमेंट कॉर्पोरेशन स्थापित किया लेकिन उन पर सन् 2018 तक अमल नहीं हो पाया.
इन दिनों कोरोना वायरस महामारी की वजह से सड़कें खाली हैं और चांदनी चौक उजड़ा हुआ है. क्या इसकी पुरानी रौनक़ वापिस आ सकती है. आइए जहां आरा के वास्तुकला से लगाव और चांदनी चौक से जुड़े जवाब तलाश करते हैं.
जब शाहजहां हिन्दुस्तान के बादशाह बने तो उन्हें अपने सपनों को पूरा करने और अपनी भव्यता को व्यक्त करने के लिए एक नए शहर और नई राजधानी की ज़रूरत महसूस हुई. इसलिए उन्होंने पुराने ऐतिहासिक शहर दिल्ली के आसपास एक जगह चुनी और एक क़िले के साथ दीवारों से घिरे एक शहर का नक़्शा बनाया. सन 1639 में इस पर काम शुरू हुआ जोकि दस साल की मेहनत और बेतहाशा पैसे ख़र्च करने के बाद सन् 1649 में तैयार होकर सामने आया.
जहां तक चांदनी चौक बाज़ार का मामला है तो ये उसके एक साल बाद यानी सन् 1650 में तैयार हुआ. जब बादशाह ने इस बाज़ार की सैर की तो उन्होंने अपनी बेटी और बेगम जहाँ आरा की पसंद की तारीफ़ की.
शहज़ादी ने आगरे के बाज़ार देखे थे और अपनी माँ के साथ वहां ख़रीदारी भी की थी लेकिन आगरे की तंग गलियां पिता शाहजहां की तरह उन्हें भी लुभा न सकीं. इसलिए उन्होंने जिस बाज़ार का नक़्शा तैयार किया उसमें दो तरफ़ा झूलते पेड़, सड़क के बीचों बीच बहती नहर और लंबे चौड़े दोनों किनारे, दूर तक जाती सीधी सड़क अपने आप में शाही गौरव और भव्यता का नमूना लगता था.
शहज़ादी जहाँ आरा (1614-1681) की माँ मुमताज़ बेगम की मृत्यु के बाद 17 साल के कमसिन कन्धों पर मुग़ल हरम का बोझ आ पड़ा लेकिन उन्होंने इसे जिस कुशलता से निभाया वो अपनी मिसाल खुद है.
चांदनी चौक का ख़ाका
जहाँ आरा की डायरी के ये पन्ने बताते हैं कि किस तरह शाहजहां ने बादशाह बनने के बाद ‘दुनिया के पसंदीदा’ शहर दिल्ली की बुनियाद रखी, कितने महल बनवाये और कितने दरवाज़े बनवाये जिसके निशान आज तक मौजूद हैं.
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में इतिहास के एसोसिएट प्रोफ़ेसर एम. वसीम राजा बताते हैं कि किस तरह जहाँ आरा ने आगे चल कर शाहजहां के शहर दिल्ली में अपने सपने को पूरा किया.
उन्होंने बताया कि उस समय दिल्ली यानी शाहजहांनाबाद में लगभग सोलह सत्रह निर्माण प्रोजेक्ट चल रहे थे जो महिलाओं की देख रेख में बन रहे थे और उनमें से आधे दर्जन का निर्माण जहां आरा की निगरानी में हो रहा था जिनमें चांदनी चौक, महल के साथ वाला बाग़ और बेगम की सराय महत्वपूर्ण हैं.
जामिया मिल्लिया इस्लामिया दिल्ली के इतिहास और सांस्कृतिक विभाग में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर डॉक्टर रहीमा जावेद रशीद ने जहाँ आरा के ज्ञान, सूफियों के प्रति भक्ति, उनकी उदारता, दरबार में उनकी रणनीति और बागानों और वास्तुकला के प्रति उनके लगाव पर बीबीसी से बात करते हुए कहा: “जहां-जहां मुगल सम्राट अपनी छाप छोड़ रहे थे, वहां, जहाँ आरा भी अपनी छाप छोड़ रही थीं.”