भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने पिछले कुछ समय से अपनी राजनीतिक गतिविधियां बढ़ा दी हैं। इससे कांग्रेस सरकार तो परेशान नहीं है लेकिन अकाली दल के नेताओं की परेशानी जरूर बढ़ गई है। भाजपा ने कई ऐसी गतिविधियां शुरू की हैं जहां अकाली दल को दिक्कत होती है। पिछले दिनों जहरीली शराब को लेकर पार्टी ने अपने स्तर पर प्रदर्शन कर और धरने देकर बता दिया कि उसका अपना स्वतंत्र आस्तित्व भी है। वह शिअद की पिछलग्गू नहीं है। एनआरआइ के साथ पंजाब के विकास के लिए भी पार्टी ने अपने स्तर पर वेबिनार किए। भाजपा काडर लंबे समय से मांग कर रहा है कि भाजपा को अकाली दल से अलग होकर स्वतंत्र चुनाव लडऩा चाहिए लेकिन पार्टी हाईकमान अभी तक फैसला नहीं कर पाई है कि ऐसा करना उनके लिए संभव है कि नहीं। हां, भाजपा की बढ़ी गतिविधियों ने अकाली दल को जरूर परेशान कर दिया है।
दशकों पुराने गठबंधन सहयोगी शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) के साथ संबंधों में तनाव के कारण भाजपा 2022 पंजाब विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने की उम्मीद के साथ तैयारी शुरू कर दी है. यह बदलाव पार्टी की दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है.
भाजपा नेताओं ने दिप्रिंट को बताया, पंजाब में शहरी क्षेत्रों तक सीमित अपने मूल वोट के साथ पार्टी पंजाब के ग्रामीण इलाकों में नए कैडर को बढ़ाने का फैसला किया है, जिसका लक्ष्य प्रमुख सिख नेताओं को साथ लाने का है, जिसमें से कई नेता अकाली दल के हैं.
भाजपा सूत्रों ने कहा, ‘अकाली दल को सिख किसानों की एक पंथ पार्टी माना जाता है- अकाली दल से अलग होने पर भाजपा हिंदुओं के अपने मूल वोट में खींचने की कोशिश कर रही है. पंजाब में हिंदू बड़े पैमाने पर कांग्रेस को वोट देते रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘हमें इस तथ्य को स्वीकार करना होगा कि पंजाब मुख्य रूप से एक कृषि राज्य है और किसान प्रमुख हितधारक हैं. भाजपा ने कभी भी किसानों पर ध्यान केंद्रित नहीं किया. अगर बीजेपी का इरादा राज्य में पार्टी को बढ़ाने का है तो वर्तमान में इसे किसानों तक पहुंचाना होगा.
नया नेतृत्व और सीट साझा करने का मुद्दा
पूर्व विधायक अश्विनी शर्मा ने नए पंजाब भाजपा अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला है, इसलिए पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने गठबंधन के बिना राज्य में 2022 के विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त की है. जब शर्मा ने पदभार संभाला, तो पूर्व कैबिनेट मंत्री मास्टर मोहन लाल ने पत्रकारों से कहा कि यह सही समय है कि पार्टी को अकाली दल से गठबंधन तोड़ लेना चाहिए.
हालांकि, मित्तल अपनी मांग में अधिक व्यावहारिक थे और उन्होंने कहा कि भाजपा को अब राज्य में बड़े भाई की भूमिका में आना चाहिए. अकाली दल और भाजपा के बीच सीटों को समान रूप से बांटा किया जाना चाहिए. 117 सीटों वाले सदन में बीजेपी को 59 और अकाली दल के पास 58 सीटें होनी चाहिए.
सहयोगी दलों के साथ वर्तमान सीट-बंटवारे के फार्मूले के अनुसार विधानसभा चुनाव में अकालियों ने 94 सीटों और भाजपा ने 23 सीटों पर चुनाव लड़ा था. वहीं पंजाब की 13 संसदीय सीटों में से अकालियों ने 10 पर और भाजपा ने तीन पर चुनाव लड़ा था.