रत में कोरोना वायरस संक्रमितों की संख्या 29 लाख के पार पहुंच गई है। कोरोना वायरस संक्रमण के लिहाज से भारत दुनिया का तीसरा सबसे अधिक प्रभावित देश है। एक ओर जहां देश में संक्रमितों की संख्या लगातार बढ़ रही है, वहीं भारत में इलाज के बाद ठीक होने वालों की संख्या भी काफी है। राजधानी दिल्ली में दूसरे सीरो सर्वे की रिपोर्ट जारी की गई है। गुरुवार को दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने दूसरी सीरो सर्वे की रिपोर्ट जारी की।
इस रिपोर्ट के मुताबिक, 29 फीसदी दिल्लीवासियों के शरीर में कोरोना वायरस के एंटीबॉडी मिले हैं। इसका मतलब यह हुआ कि इन लोगों को कोरोना संक्रमण हो चुका है और उनके शरीर ने उसके खिलाफ एंटीबॉडी विकसित कर ली है। गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने बताया कि दिल्ली में एक से सात अगस्त तक सीरो सर्वे के लिए सैंपल लिए गए थे। इसमें 29.1 फीसदी लोगों में एंटीबॉडी पाई गई है। यह दूसरे सीरो सर्वे की रिपोर्ट है।
पहला सीरो सर्वे जुलाई में किया गया था, जिसमें पाया गया था कि एक-चौथाई से ज्यादा दिल्लीवासी संक्रमित हो चुके हैं। इस सर्वे के लिए 21,387 सैंपल लिए गए थे, जिसमें 23.48 फीसदी लोगों में विकसित एंटीबॉडी पाई गई थी। लेकिन इस बार यह सैंपल साइज 15 हजार लोगों तक ही सीमित था। दूसरे सर्वे में 32.2 फीसदी महिलाओं में और 28 फीसदी पुरुषों में विकसित एंटीबॉडी मिली। इसका एक सीधा मतलब ये भी है कि दो करोड़ की आबादी वाली राजधानी में करीब साठ लाख लोग संक्रमण के बाद ठीक हो चुके हैं।
हालांकि दिल्ली अभी भी हर्ड इम्यूनिटी विकसित करने से दूर है। सत्येंद्र जैन ने कहा कि जब किसी जगह पर 40 से लेकर 70 फीसदी लोग एंटीबॉडी विकसित कर लेते हैं तो वहां हर्ड इम्यूनिटी विकसित हो जाती है। सीरो सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, मुंबई और पुणे में भी 40 प्रतिशत के करीब लोगों में विकसित एंटीबॉडी मिली है।
लेकिन क्या एंटीबॉडी विकसित हो जाने से दोबारा संक्रमण नहीं होगा?
आईसीएमआर में एपिडेमियोलॉजी एंड कम्यूनिकेबल डिजीज डिपार्टमेंट में डॉ. निवेदिता गुप्ता कहती हैं, ‘इस बात के अभी बहुत अधिक प्रमाण तो नहीं हैं कि दोबारा संक्रमित हो सकते हैं या नहीं, लेकिन इससे जो स्पष्ट तौर पर बात सामने आती है वो यह कि ये लोग एक बार संक्रमित हो चुके हैं और उन्होंने एक इम्यून विकसित कर लिया है।’
वो कहती हैं, ‘हम उम्मीद तो कर रहे हैं कि वे आने वाले कुछ समय तो सुरक्षित रहेंगे, लेकिन दोबारा संक्रमित हो सकते हैं या नहीं, दुनियाभर में इससे जुड़े बेहद कम प्रमाण हैं। ऐसे में प्रमाणिक तौर पर कुछ भी कहा नहीं जा सकता।’ सीरो सर्वे से जो नतीजे आए हैं ‘उससे सिर्फ ये पता चल रहा है कि वे संक्रमित हुए थे और अभी ठीक हो चुके हैं।’
जिनमें एंटीबॉडी विकसित हो गई है तो क्या वे प्लाज्मा डोनेट कर सकते हैं
सभी जानकार मानते हैं कि इस सर्वे के नतीजे इस बात का सबूत नहीं है कि जिन लोगों में एंटीबॉडी मिले हैं वो प्लाज्मा डोनेट कर सकते हैं। दरअसल इसके लिए अलग टेस्ट करने होंगे। आम तौर पर माना जाता है कि मॉडरेट या सिवियर कोरोना मरीज ही प्लाज्मा डोनेट कर सकते हैं। डॉ. हरजीत सिंह कहते हैं, ‘हर व्यक्ति के शरीर की अपनी मेमोरी होती है। लर्निंग होती है कि किस वायरस से किस तरह लड़ना है और हर बॉडी का अलग तरीका होता है कि वो कैसे रेस्पॉन्स करे। तो यह जरूरी नहीं है कि अगर किसी व्यक्ति के अंदर कोई सेल अच्छे से काम कर रही हैं तो वो ही सेल दूसरे में भी अच्छे से काम करें।’
क्या है सीरोलॉजिकल टेस्ट?
सीरोलॉजिकल टेस्ट दरअसल एक तरीके का ब्लड टेस्ट है जो व्यक्ति के खून में मौजूद एंटीबॉडी की पहचान करता है। ब्लड में से अगर रेड ब्लड सेल को निकाल दिया जाए, तो जो पीला पदार्थ बचता है उसे सीरम कहते हैं। इस सीरम में मौजूद एंटीबॉडीज से अलग-अलग बीमारियों की पहचान के लिए अलग-अलग तरह के सीरोलॉजिकल टेस्ट किए जाते हैं।
बावजूद इसके, सभी तरह के सीरोलॉजिकल टेस्ट में एक बात कॉमन होती है और वो ये है कि ये सभी इम्यून सिस्टम द्वारा बनाए गए प्रोटीन पर फोकस करते हैं। शरीर का यह इम्यून सिस्टम यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता बाहरी तत्वों द्वारा शरीर पर किए जा रहे आक्रमण को रोक कर आपको बीमार पड़ने से बचाता है।

इस टेस्ट से हासिल क्या होगा?
ऐसे टेस्ट की जरूरत इसलिए है ताकि कंटेनमेंट प्लान में बदलाव की कोई गुंजाइश हो या फिर सरकार को अपनी टेस्टिंग की रणनीति में कोई बदलाव लाना हो तो तुंरत किया जा सके। कुल मिला कर कोरोना के फैलने से रोकने के लिए ये टेस्ट जरूरी हैं